सम्बन्ध , एक कविता !

सम्बन्ध , एक कविता !

 

सम्बन्ध , एक कविता

 

एक दिन एक सुंदर कविता से परिचय हुआ ,

उसका हर एक शब्द, जैसे एक-मेक में समरस हो गया था !

जैसे उसका हर एक शब्द दुसरे के बगैर अधूरा था, निष्प्राण था !

पर जब मैंने एक एक शब्द को अलग अलग से देखना शुरू किया , तो मै हैरान रह गया !

कुछ शब्द इतर शब्दों से पुर्णतः विपरीत थे , complete opposite!

कुछ स्वभाव से शांत थे, कुछ बेहद उग्र !

किसी शब्द का इतिहास पूर्व की ओर जाता को किसी का पश्चिम, DNA में कोई match नहीं ! उतपत्ति स्थानों में जमीन आसमान का अन्तर. उनके व्यक्तित्व में acid-base का फर्क, उनके स्वभावो में चाँद तारो का अन्तर !

मै जितना विश्लेष्ण करता गया उतना ही हैरत में पड़ता गया. और फिर मुझसे रहा नही गया , मै उनसे पूछ ही बैठा , “क्या आप लोगो में कभी तनाव नहीं होता ? झगडा या ego clash नहीं होता ?”

तो पहले तो वे हस पड़े, पर बादमे उन्होंने जो कहा वो सही में अपने आपमें एक दर्शन शास्त्र से कम नही लगा मुझे !

वे बोले ,”हम सब अलग है, अलग जगहों से आये है , शब्दकोशों में हमारा address अलग है , हमें दुनिया में लाने वाले लोग भिन्न है , और हमें हमारे अस्तित्व पर गर्व भी है ! तो स्वाभाविक रूप से हम लोगो में मतभेद और झगड़े भी होना लाज्मी है, पर तब तक ही जब तक हम शब्दों के रूप में है ! यानि जब तक हम किताबो में बंद पड़े होते है.

किन्तु जब किताब खुलती है और कोई हमें पढ़ता है , तब हमारा कोई individual अस्तित्व ही नही रहता, जैसे किसी नदी में बूंदों का अस्तित्व हो कर भी नही होता , पर वे सारी बूंदे बूंदे न होकर नदी होती है , irrespective of different nature of all those drops. नदी में आते ही सारी बूंदे ही नदी बन जाती है. वैसे ही कविता के रूप में आते ही हम सब मिलकर एक काव्य बन जाते है , अपने व्यक्तिगत अस्तित्व को त्याग कर , एक collective अस्तित्व बन जाते है “

उनकी हर एक बात मुझे मन्त्र मुग्ध कर रही थी , तभी उन्होंने एक आखरी वाक्य कहा, जो मेरे दिलोदिमाग पर छा गया ..

वे बोले , “ जब यह किताब खुलती है और हम काव्य बन जाते है तब हम हमारे ego के लिए नही पर काव्य के ego के लिए जीते है “

और ये बात मुझे ज्यादा इसलिए छू गयी , क्योकि मैंने उसे एक युगल के संबंधो से जोड़ कर देखा. मुझे हमेशा से लगता था कि कोई भी सम्बन्ध किसी काव्य की तरह ही होता है , उसमे भी लय , ताल, भाव, आरोह, अवरोह, मधुरता, कटुता सब कुछ होता है , जो किसी महा काव्य में होना चाहिए

और उसमे भी दोनों व्यक्तिओ के व्यक्तित्व अलग है, उनके रचयिता अलग है , संस्कार और  मान्यताए अलग है , और सबसे बड़ी बात दोनों के ego अलग है .और शुरू में वे दोनों अपनी इन भिन्नताओ से परिचित नही होते और इसी वजह से वे एक दुसरे से कुछ ज्यादा ही अपेक्षा भी रखते है, पर यह scene ज्यादा देर तक नही टिकता और कविता के शब्दों में अन्दर अन्दर ही घमासान मच जाता है ! और एक सुन्दर काव्य कर्कश बन जाता है , एक बीमारी बन जाता है !

एक बेहद जरुरी बात जो उस काव्य के शब्द समज गए थे , जो ये युगल नही समज पाए, वो यह कि काव्य का अपना एक ego है और हर शब्द काव्य के ego के लिए लड़ता है !

वैसे ही संबध का भी एक ego होता है , जब सम्बन्ध कर्कश हो जाता है तो सम्बन्ध की बेइज्जती होती है.

यह औरो के सम्मान के लिए अपने आत्म सम्मान को sacrifice करने की बात नही है, यह बात है एक ऐसी बात समजने की कि हमारे संबंधो का भी एक आत्म सन्मान है , ego है जो हम दोनों के ego से ज्यादा जरुरी है. जब हम एक कपल है तो हम सिर्फ एक कपल ही है हमारा व्यक्तिगत अस्तित्व मिट कर एक युगल का अस्तित्व जन्म लेता है , जैसे बूंदे अपना अस्तित्व मिटा कर नदी के अस्तित्व को जन्म देती है !


With Love for all the Swa-Darshaks !

From,

Manish Khernar, MD(AM), Hypnotherapist & Psychological Counselor

Founder of Swa-Darshana, “An Appointment with Your .. Self !”

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